भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश (शिक्षाएँ)

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भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश (शिक्षाएँ) मुख्यतः श्रीमद्भगवद्गीता में संकलित हैं। उन्होंने अर्जुन को युद्धभूमि (कुरुक्षेत्र) में जीवन, कर्म, धर्म, और आत्मा के गूढ़ रहस्य बताए। नीचे उनके कुछ प्रमुख उपदेश दिए गए हैं 👇


🌿 भगवान श्रीकृष्ण के प्रमुख उपदेश:

1. कर्म ही सबसे बड़ा धर्म है

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
गीता 2.47
👉 मतलब: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल में नहीं।
➡️ सिखाता है कि हमें अपना कर्तव्य ईमानदारी से करना चाहिए, परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए।


2. आत्मा अमर है

“न जायते म्रियते वा कदाचिन्।”
गीता 2.20
👉 आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
➡️ शरीर नश्वर है, पर आत्मा शाश्वत है।


3. इंद्रियों पर नियंत्रण रखो

“यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः।”
गीता 2.58
👉 जैसे कछुआ अपने अंगों को भीतर खींच लेता है, वैसे ही ज्ञानी व्यक्ति अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में रखता है।


4. सफलता और असफलता में समभाव रखो

“समत्वं योग उच्यते।”
गीता 2.48
👉 सफलता और असफलता, सुख और दुख — सब में समान भाव रखना ही योग है।


5. लोभ, क्रोध और मोह का त्याग करो

“त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः — कामः, क्रोधः, तथा लोभः।”
गीता 16.21
👉 काम, क्रोध और लोभ — ये तीन नरक के द्वार हैं। इनसे दूर रहो।


6. सच्चे भक्त को मैं सदा अपने पास रखता हूँ

“भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः।”
गीता 18.55
👉 केवल भक्ति के द्वारा ही कोई मुझे वास्तव में जान सकता है।


7. जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो होगा वह भी अच्छा होगा।

👉 यह श्रीकृष्ण का व्यावहारिक जीवन संदेश है — हर परिस्थिति को स्वीकार करना सीखो।


8. प्रत्येक कार्य में निष्ठा और श्रद्धा रखो

“श्रद्धावान लभते ज्ञानम्।”
गीता 4.39
👉 जो श्रद्धा और विश्वास रखता है, वही सच्चा ज्ञान प्राप्त करता है।

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