भगवान श्रीकृष्ण हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय, प्रिय और लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं। वे भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं, और अनेक भक्त उन्हें स्वयं परमात्मा का स्वरूप मानते हैं। श्रीकृष्ण का जीवन, उनकी लीलाएँ, और उनके उपदेश महाभारत, भागवत पुराण और गीता जैसे पवित्र ग्रंथों में वर्णित हैं।
🌸 जन्म और बाल्यकाल
श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा नगरी में हुआ था, उनके माता-पिता देवकी और वसुदेव थे। जन्म के समय उनके मामा कंस ने उन्हें मारने का प्रयास किया, क्योंकि भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी का आठवाँ पुत्र कंस का वध करेगा। इसलिए वसुदेव जी ने बालक कृष्ण को गोकुल में नंद बाबा और यशोदा माता के घर पहुंचा दिया।
बालक कृष्ण ने गोकुल और वृंदावन में अपने बचपन के दिन बिताए। वे बचपन में माखन चोरी, गोपियों से हंसी-मज़ाक, और बांसुरी बजाने जैसी लीलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं।
🪔 वृंदावन की लीलाएँ
वृंदावन में कृष्ण का प्रेम और भक्ति का रूप प्रकट होता है। राधा और गोपियों के साथ उनकी रासलीला आत्मा और परमात्मा के शुद्ध प्रेम का प्रतीक है।
कृष्ण का गोवर्धन पर्वत उठाना, कालिया नाग का मर्दन, और पुतना राक्षसी का वध जैसी लीलाएँ उनकी दिव्यता को दर्शाती हैं।
⚔️ महाभारत और गीता उपदेश
युवावस्था में श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों के मित्र, सलाहकार और अर्जुन के सारथी बने। युद्ध के मैदान में उन्होंने अर्जुन को जो उपदेश दिया, वह भगवद गीता कहलाता है — जो जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन देने वाला अद्भुत ग्रंथ है।
गीता में श्रीकृष्ण ने बताया:
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कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो।
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धर्म के मार्ग पर चलना ही जीवन का कर्तव्य है।
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भक्ति, ज्ञान और निष्काम कर्म ही मुक्ति का मार्ग हैं।
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ईश्वर हर जीव में विद्यमान है।
🎶 श्रीकृष्ण का स्वरूप और प्रतीक
श्रीकृष्ण को प्रायः ऐसे दर्शाया जाता है:
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नीले या श्याम वर्ण के रूप में — जो अनंतता और गहराई का प्रतीक है।
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हाथ में बांसुरी, सिर पर मोरपंख, और गले में वैजयंती माला।
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उनके साथ गायें, गोपियाँ और राधा रानी होती हैं।
🕉️ श्रीकृष्ण के उपदेशों का सार
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सच्चा कर्म वही है जो बिना स्वार्थ और परिणाम की चिंता के किया जाए।
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भक्ति सबसे श्रेष्ठ साधना है — प्रेम से ईश्वर को पाया जा सकता है।
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सत्य, धर्म, प्रेम, करुणा और क्षमा जीवन के मूल स्तंभ हैं।
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जीवन एक लीला है — इसे आनंद और संतुलन के साथ जीना चाहिए।
🌿 प्रभाव
श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रेरणा का स्रोत है। उनकी शिक्षाएँ कला, संगीत, नृत्य, दर्शन और अध्यात्म के हर क्षेत्र में अमर हैं।
उनका जन्मदिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में पूरे भक्तिभाव से मनाया जाता है।
