120 बहादुर विवाद – विस्तार में
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ऐतिहासिक तथ्य का विकृति (Distorted History)
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अहीर (यादव) समुदाय का आरोप है कि फिल्म में युद्ध की असल टीम (C कंपनी, 13 Kumaon रेजिमेंट) के सामूहिक बलिदान को कम दिखाया जा रहा है
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फिल्म में मेजर शैतान सिंह को “Bhati” नामक पात्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है, और कुछ प्रोमो में ऐसा लग रहा है कि यह कहानी सिर्फ उसके बहादुरी की है, न कि पूरी कंपनी की।
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यह “लोन हीरो” वाला दृष्टिकोण अहीर समुदाय के लिए अस्वीकार्य है क्योंकि युद्ध में बहुत सारे अहीर सैनिक थे जो मिलकर लड़े थे।
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फिल्म का नाम बदलने की मांग
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याचिकाकर्ता और अहीर समुदाय चाहते हैं कि नाम “120 बहादुर” की बजाय “120 वीर अहीर” हो, ताकि उन सैनिकों की पहचान और उनकी सामुदायिक पृष्ठभूमि को सम्मान मिले।
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उनका तर्क है कि सिर्फ “बहादुर” लिख देने से यह अस्पष्ट हो जाता है कि ये बहादुरी किसकी है — जिससे अहीर सैनिकों की विशिष्ट भूमिका और मिट जाती है।
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न्यायालय (PIL) और कानूनी कदम
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Sanyukt Ahir Regiment Morcha नामक संगठन ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में PIL दायर की है। वो मांग कर रहे हैं: फिल्म का नाम बदला जाए, सभी 120 सैनिकों के नाम फ़िल्म में दिखाये जाएँ, और “सत्यापन” किया जाए कि उनकी कहानी सही तरीके से दिखाई गयी है। याचिका में यह भी दलील दी गई है कि फिल्म “इतिहास को विकृत कर रही है” और यह अहीर रेजिमेंट की सामूहिक पहचान को मिटा रही है।
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उन्होंने Cinematograph Act (1952) की उन धाराओं का हवाला दिया है, जो “historic distortion” को रोकते हैं।
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हाई कोर्ट का फैसला
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पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने अहीर समाज की याचिका को खारिज कर दिया है।
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अदालत ने कहा कि इतने आखिरी समय (फिल्म रिलीज़ के करीब) टाइटल बदलने की मांग उचित नहीं है।
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साथ ही, प्रोड्यूसर्स ने वादा किया है कि फिल्म के अंत में सभी 120 सैनिकों के नाम एक श्रद्धांजलि पैनल के रूप में दिखाये जाएंगे।
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कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर OTT रिलीज़ में ज़रूरी हो, तो नाम-सूची और सही रेजिमेंट की जानकारी वहां बेहतर तरीके से दिखाई जाए।
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सम्मान और पहचान का मुद्दा
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अहीर समुदाय का कहना है कि यह सिर्फ फिल्म का मुद्दा नहीं है — यह उनके शहीद पूर्वजों की पहचान और सम्मान का सवाल है।
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वे यह महसूस करते हैं कि यदि फिल्म इतिहास को गलत तरीके से दिखाएगी, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए “सच” बदल सकता है, और उनकी सामुदायिक वीर गाथा मिट सकती है।
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इसलिए यह विवाद सिर्फ “नाम बदलो” तक सीमित नहीं है, बल्कि इतिहास को सही तरीके से याद रखने और सामूहिक शौर्य को मान्यता देने का संघर्ष माना जा रहा है।
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